कभी-कभी फिल्मों से हमारी उम्मीदें आसमान छूती हैं, लेकिन जब पर्दे पर वही फिल्म अधूरी सी लगे, तो मन में एक कसक रह जाती है। टाइगर श्रॉफ की बागी 4 भी कुछ ऐसी ही कहानी कहती है। ट्रेलर ने जितना जोश बढ़ाया था, थिएटर में फिल्म देखते समय सेंसर बोर्ड की कैंची ने उस जोश को ठंडा कर दिया।
सेंसरशिप का सबसे बड़ा धोखा
सबसे पहले तो बात करते हैं सेंसर बोर्ड की। जब किसी फिल्म को एडल्ट सर्टिफिकेट ही देना है, तो फिर 23 कट्स लगाने का क्या मतलब? ट्रेलर में जो खून-खराबा और वायलेंस दिखाया गया था, वही असल फिल्म में गायब है। दर्शक टिकट खरीदते वक्त सोचते हैं कि उन्हें वही एक्शन देखने मिलेगा, लेकिन स्क्रीन पर पहुंचते ही समझ आता है कि फिल्म अधूरी रह गई है। सच कहें तो यह धोखा फिल्ममेकर्स ने नहीं, बल्कि सेंसरशिप ने दिया है।
कहानी का ट्विस्ट – दिमाग और दिल का खेल
अब आते हैं फिल्म की कहानी पर। बागी फ्रेंचाइज़ की पिछली फिल्मों की तुलना में इस बार की स्टोरी थोड़ी अलग और दिलचस्प है। एक लड़का मौत के मुंह से लौटकर जिंदा होता है और सबसे पहले उस लड़की का नाम लेता है, जो उसके अलावा किसी को दिखाई ही नहीं देती। डॉक्टर कहते हैं कि वह हेलुसिनेशन कर रहा है। लेकिन रहस्य यहीं खत्म नहीं होता, क्योंकि वही लड़की असल जिंदगी में भी मौजूद है और कहीं न कहीं दफन भी।
कहानी में धोखे, यादों और इमेजिनेशन का ताना-बाना है। सवाल यह है कि असलियत में क्या हो रहा है – भूत-प्रेत, मन का खेल या कोई चालाक मास्टरमाइंड? यही सस्पेंस फिल्म को आगे बढ़ाता है।
तमिल फिल्म से मिलती-जुलती कहानी
लेकिन यहां दिल थोड़ा टूट जाता है। फिल्म पूरी तरह से ओरिजिनल नहीं है। यह तमिल फिल्म ट्रिपल 5 से काफी मिलती-जुलती है। फर्क सिर्फ इतना है कि बागी 4 को बड़े बजट, दमदार म्यूजिक और स्टारकास्ट से सजाया गया है। जैसे साधारण मैगी में सब्ज़ियां और मसाले डालकर उसे नया नाम दे दिया जाए।
एक्शन का धमाका – टाइगर का जलवा
अगर एक चीज है जो फिल्म को संभालती है, तो वह है टाइगर श्रॉफ का एक्शन। उनकी एनर्जी और स्क्रीन प्रेजेंस गज़ब का है। जब टाइगर मारते हैं तो थिएटर तालियों से गूंज उठता है। बैकग्राउंड म्यूजिक उनके हर मूव को और भी पावरफुल बना देता है। बस अफसोस यही कि सेंसर बोर्ड ने कई धमाकेदार सीन काट दिए, वरना थिएटर का माहौल और भी जबरदस्त होता।
संजय दत्त की बर्बाद होती ताकत
फिल्म में संजय दत्त भी हैं। लेकिन अफसोस, ट्रेलर में जितना दमदार लगे थे, फिल्म में उनका किरदार उतना ही कमज़ोर लिखा गया है। उनकी इमेज के बावजूद उनका एक्शन प्लास्टिक जैसा बन गया है, जो दर्शकों को असली मज़ा नहीं दे पाता। क्लाइमेक्स में टाइगर और संजू बाबा का आमना-सामना वो धमाका नहीं कर पाया, जिसकी उम्मीद थी।
हरनाज़ का सरप्राइज
सबसे बड़ा सरप्राइज देती हैं हरनाज़। यह उनकी पहली फिल्म है, लेकिन उनकी मेहनत और स्क्रीन प्रेजेंस साफ झलकती है। उनका किरदार रहस्यमय है और उन्होंने पूरी कोशिश की है कि दर्शक उनकी परफॉर्मेंस को याद रखें।
फिल्म का असली हाल
कुल मिलाकर, बागी 4 ना तो मास्टरपीस है और ना ही पूरी तरह खराब। यह एक मिस्ड अपॉर्चुनिटी है। अगर सेंसरशिप इतनी सख्त ना होती और डायरेक्टर ने इमोशन्स और कहानी पर ज्यादा फोकस किया होता, तो यह फिल्म टाइगर श्रॉफ के करियर का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हो सकती थी।
टाइगर फैंस को फिल्म में खूब मज़ा आएगा – एक्शन, सस्पेंस और उनका नया अंदाज़। लेकिन न्यूट्रल ऑडियंस शायद क्लाइमेक्स, संजय दत्त की कमजोर प्रस्तुति और कॉपी वाली फीलिंग से निराश हो सकती है।
Disclaimer: यह रिव्यू पूरी तरह लेखक की व्यक्तिगत राय है। पाठकों का अनुभव इससे अलग हो सकता है।